कल तक जो चाहते थे,
दूर जाना हमसे।
क्यों आज पास आने के,
बहाने खोज करते हैं।
सहन न होता था जिनको,
हमारा आस पास भी होना।
क्यों आज वो ही हमें ,
यहां वहां खोज करते हैं।
चाहते थे कभी ,
ओझल कर देना हमको ,
नज़रों से अपनी।
क्यों आज वो ही खुद ,
हमारी नज़रों में आना चाहते हैं।
कहा था हमने तो ,
कि ,
बेक़सूर हैं हम ,
लगा दिया फिर भी उन्होंने
आरोप हम पर ,
और ,
आज वो खुद ही ,
कसूरवार होना चाहते हैं।
वाह ! क्या बात है ! लाजवाब !! बहुत खूब आदरणीय ।
जवाब देंहटाएं
हटाएंआपका हार्दिक आभार।
सही कहा.....
जवाब देंहटाएंसमय के साथ सोच भी बदलती है इंसान की...
जो आज बुरा वो कल अच्छा....
बिल्कुल सही कहा आपने।
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद।
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