रह पाता,
अगर मैं अकेला,
रह जाता,
हमेशा के लिये।
पर,
आसान नहीं है,
ऐसा करना।
क्योंकि,
जरूरत होती है इंसान को,
सदा ही दूसरे इंसान की।
सोचता हूं क्या होता,
अगर मैं आने ही न देता,
किसी को जीवन में अपने।
पर संभव ही न था ऐसा हो पाना,
क्योंकि,
अकेले जीने की व्यथा को,
महसूस किया है
मैंने,
करीब से,
इतना करीब से,
कि,
यह व्यथा भी बनकर रह गयी है,
एक अनुभूति जानी-पहचानी सी।
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार।
अकेलेपन की व्यथा.....
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
इंसान को इंसान की जरूरत होती है
सरल और सहज भाषा में मन की बात
वाह!!!!
बहुत बहुत धन्यवाद।
हटाएंवाह वाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंआपका हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति विजय जी ।
जवाब देंहटाएंआपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंअकेलेपन की अनुभूति को अच्छा जिया आपने .. बहुत अच्छा लिखा है !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
हटाएंवाह बहुत सुंदर 👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
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