अजनबी सी राहें हैं,
चलते रहना जिंदगी हैं|
चले जा रहे हैं बिना रुके,
न राह का पता है,
न मंजिल का|
बस इसी उम्मीद में
कि
शायद आज नहीं तो कल सही,
जान ही जायेंगे हकीकत अपनी जिंदगी की|
कैसी राहें है ये,
कैसी दुनिया है ये,
नहीं दिखती रोशनी कहीं,
हर तरफ है गुमनामी के अँधेरे|
इन्ही अँधेरों में कहीं,
खोकर रह गयी है
जिंदगी मेरी भी|
बस जी रहे हैं
किसी एक की तलाश में|
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